शोर की रात
रमेश एक छोटे से गांव में रहता था। उसका जीवन सरल और शांत था, लेकिन एक रात उसका जीवन पूरी तरह से बदल गया।
एक रात, गांव में एक अत्यंत तेज तूफान आया। हवाओं ने घरों की छतों को उड़ा दिया और पेड़-पौधों को नष्ट कर दिया। रमेश की फ़ैमिली भी उस तूफान का शिकार हो गई। उनका घर गिर गया और उनका सब कुछ बर्बाद हो गया।
रमेश और उसका परिवार ने गांव के एक शैली शाला में शरण ली। यहाँ उनको भोजन और सुरक्षा की कमी महसूस हो रही थी।
एक दिन, रमेश ने देखा कि एक बुढ़िया आधे बुझी हुई आग के पास बैठी हुई थी। वह बुढ़िया बिना बोले ही अगले दिन आ गई और दोनों हाथों में एक-एक गर्मी की रोटी लेकर आई। वह एक दिन बाद भी वैसा ही करती रही।
रमेश ने उस बुढ़िया से पूछा, "आप इसे क्यों कर रही हैं?"
बुढ़िया ने कहा, "मैं यह काम इसलिए कर रही हूँ क्योंकि मेरे पास जो है, वो छोटा सा भी हो सकता है, पर मैं अपनी सीमाओं के बावजूद दूसरों की मदद करना चाहती हूँ।"
रमेश ने बुढ़िया से प्रेरणा ली और अपने परिवार के साथ मिलकर वही किया। वे गांव के अन्य लोगों की मदद करने लगे, चाहे वो बच्चे हों या बूढ़े।
धीरे-धीरे, गांव की स्थिति सुधारने लगी। लोग एक-दूसरे की मदद करने लगे और गांव की सामाजिक बंदनें मजबूत हो गई। रमेश ने समझा कि जब आप अपनी सीमाओं को पार करके दूसरों की मदद करते हैं, तो आपका जीवन भी खुशियों से भर जाता है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि अगर हम दूसरों की मदद करते हैं, तो हमारा जीवन भी महसूस करने योग्य और सार्थक हो जाता है।

